Kumar Vishwas ki Shayari / Kavita in Hindi
Kumar Vishwas ki Shayari / Kavita in Hindi
मैं तुम्हें ढूँढने स्वर्ग के द्वार तक
मैं तुम्हें ढूँढने स्वर्ग के द्वार तक
रोज आता रहा, रोज जाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा
रोज आता रहा, रोज जाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा
जिन्दगी के सभी रास्ते एक थे
सबकी मंजिल तुम्हारे चयन तक गई
अप्रकाशित रहे पीर के उपनिषद्
मन की गोपन कथाएँ नयन तक रहीं
प्राण के पृष्ठ पर गीत की अल्पना
तुम मिटाती रही मैं बनाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा
सबकी मंजिल तुम्हारे चयन तक गई
अप्रकाशित रहे पीर के उपनिषद्
मन की गोपन कथाएँ नयन तक रहीं
प्राण के पृष्ठ पर गीत की अल्पना
तुम मिटाती रही मैं बनाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा
एक खामोश हलचल बनी जिन्दगी
गहरा ठहरा जल बनी जिन्दगी
तुम बिना जैसे महलों में बीता हुआ
उर्मिला का कोई पल बनी जिन्दगी
दृष्टि आकाश में आस का एक दिया
तुम बुझती रही, मैं जलाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा
गहरा ठहरा जल बनी जिन्दगी
तुम बिना जैसे महलों में बीता हुआ
उर्मिला का कोई पल बनी जिन्दगी
दृष्टि आकाश में आस का एक दिया
तुम बुझती रही, मैं जलाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा
तुम चली गई तो मन अकेला हुआ
सारी यादों का पुरजोर मेला हुआ
कब भी लौटी नई खुशबुओं में सजी
मन भी बेला हुआ तन भी बेला हुआ
खुद के आघात पर व्यर्थ की बात पर
रूठती तुम रही मैं मानता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा
मैं तुम्हें ढूँढने स्वर्ग के द्वार तक
रोज आता रहा, रोज जाता रहा
--Kumar Vishwas
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सारी यादों का पुरजोर मेला हुआ
कब भी लौटी नई खुशबुओं में सजी
मन भी बेला हुआ तन भी बेला हुआ
खुद के आघात पर व्यर्थ की बात पर
रूठती तुम रही मैं मानता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा
मैं तुम्हें ढूँढने स्वर्ग के द्वार तक
रोज आता रहा, रोज जाता रहा
--Kumar Vishwas
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तुम बिन कितने आज अकेले
तुम बिन कितने आज अकेले,
क्या हम तुमको बतलायें?
अम्बर में है चाँद अकेला,
तारे उसके साथ तो हैं,
तारे भी छुप जाएँ अगर तो,
साथ अँधेरी रात तो हैं,
पर हम तो दिन रात अकेले
क्या हम तुमको बतलायें..?
अम्बर में है चाँद अकेला,
तारे उसके साथ तो हैं,
तारे भी छुप जाएँ अगर तो,
साथ अँधेरी रात तो हैं,
पर हम तो दिन रात अकेले
क्या हम तुमको बतलायें..?
जिन राहों पर हम-तुम संग थे,
वो राहें ये पूछ रही हैं
कितनी तन्हा बीत चुकी हैं,
कितनी तन्हा और रही है
दिल दो हैं,ज़ज्बात अकेले,
क्या हम तुमको बतलायें..?
कितनी तन्हा बीत चुकी हैं,
कितनी तन्हा और रही है
दिल दो हैं,ज़ज्बात अकेले,
क्या हम तुमको बतलायें..?
वो लम्हें क्या याद हैं तुमको
जिनमें तुम-हम हमजोली थे,
महका-महका घर आँगन था
रात दिवाली,दिन होली थे,
अब हैं,सब त्यौहार अकेले,
क्या हम तुमको बतलायें..?
महका-महका घर आँगन था
रात दिवाली,दिन होली थे,
अब हैं,सब त्यौहार अकेले,
क्या हम तुमको बतलायें..?
--Kumar Vishwas
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TERA SATH KAFI HAI
Ye Jag Roothe Agar Hamase To Tera Sath Kafi Hai,
Bina Kismat Ke In Hatho Me Tera Hath Kafi Hai!
Bina Kismat Ke In Hatho Me Tera Hath Kafi Hai!
Mujhe Janmo-Janam Tak Isk Me Pagal Banane Ko,
Tumhare Sang Jo Biti Hai Vahi Ek Rat Kafi Hai!1!
Tumhare Sang Jo Biti Hai Vahi Ek Rat Kafi Hai!1!
Agar Madhuban Me Bhavare Ki Kali Se Bat Na Hogi,
To Sach Mano Mohabbat Ki Kabhi Survat Na Hogi!
To Sach Mano Mohabbat Ki Kabhi Survat Na Hogi!
Javan Hokar Hazzaro Khvab Tum Dil Me Saja Lo Par,
Hamare Bin Tumhari Jindgi Me Rat Na Hogi!2!
Hamare Bin Tumhari Jindgi Me Rat Na Hogi!2!
Jindgi To Paheli Thi, Paheli Hai, Rahegi Bhi,
Hansi Gam Ki Saheli Thi, Saheli Hai, Rahegi Bhi!
Hansi Gam Ki Saheli Thi, Saheli Hai, Rahegi Bhi!
Bhale Hokar Juda Mujhase Vo Apana Ghar Basa Legi,
Magar Mujh Bin Akeli Thi, Akeli Hai, Rahegi Bhi!3!
Magar Mujh Bin Akeli Thi, Akeli Hai, Rahegi Bhi!3!
Hamare Dil Me Rahate Ho To Fir Kaisi Ye Duri Hai,
Abhi Tak Kah Nahi Paya Par Ab Kahana Jaroori Hai!
Abhi Tak Kah Nahi Paya Par Ab Kahana Jaroori Hai!
Khafa Hokar Chale Jao Magar Itana Samajh Lana,
Mai Tere Bin Adhura Hun Tu Mere Bin Adhuri Hai….
--Kumar Vishwas
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Mai Tere Bin Adhura Hun Tu Mere Bin Adhuri Hai….
--Kumar Vishwas
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मांग की सिंदूर रेखा
मांग की सिंदूर रेखा , तुमसे ये पूछेगी कल,
यूँ मुझे सर पर सजाने का तुम्हे अधिकार क्या है ?
तुम कहोगी वो समर्पण ,बचपना था तो कहेगी,
गर वो सब कुछ बचपना था,तो कहो फिर प्यार क्या है ?
मांग की सिंदूर रेखा..........................
यूँ मुझे सर पर सजाने का तुम्हे अधिकार क्या है ?
तुम कहोगी वो समर्पण ,बचपना था तो कहेगी,
गर वो सब कुछ बचपना था,तो कहो फिर प्यार क्या है ?
मांग की सिंदूर रेखा..........................
कल कोई अल्हड अयाना ,बावरा झोंका पवन का,
जब तुम्हारे इंगितो पर ,गंध भर देगा चमन में ,
या कोई चंदा धरा का ,रूप का मारा बेचारा,
कल्पना के तार से नक्षत्र जड़ देगा गगन पर ,
तब किसी आशीष का आँचल मचल कर पूछ लेगा ,
"यह नयन-विनिमय अगर है प्यार तो व्यापार क्या है ?"
कल तुम्हरे गंधवाही-केश ,जब उड़ कर किसी की ,
आखँ को उल्लास का आकाश कर देंगे कहीं पर ,
और सांसों के मलयवाही-झकोरे मुझ सरीखे
नव-तरू को सावनी-वातास कर देगे वहीँ पर ,
तब यही बिछुए, महावर, चूड़ियाँ ,गजरे कहेंगे,
इस अमर-सौभाग्य के श्रृंगार का आधार क्या है ?
मांग की सिंदूर रेखा..........................
कल कोई दिनकर विजय का ,सेहरा सर पर सजाये ,
जब तुम्हारी सप्तवर्णी छाँह में सोने चलेगा ,
या कोई हारा-थका व्याकुल सिपाही जब तुम्हारे ,
वक्ष पर धर शीश लेकर हिचकियाँ रोने चलेगा ,
तब किसी तन पर कसी दो बांह जुड़ कर पूछ लेगी,
इस प्रणय जीवन समर में जीत क्या है हार क्या है ?
मांग की सिंदूर रेखा..........................
जब तुम्हारे इंगितो पर ,गंध भर देगा चमन में ,
या कोई चंदा धरा का ,रूप का मारा बेचारा,
कल्पना के तार से नक्षत्र जड़ देगा गगन पर ,
तब किसी आशीष का आँचल मचल कर पूछ लेगा ,
"यह नयन-विनिमय अगर है प्यार तो व्यापार क्या है ?"
कल तुम्हरे गंधवाही-केश ,जब उड़ कर किसी की ,
आखँ को उल्लास का आकाश कर देंगे कहीं पर ,
और सांसों के मलयवाही-झकोरे मुझ सरीखे
नव-तरू को सावनी-वातास कर देगे वहीँ पर ,
तब यही बिछुए, महावर, चूड़ियाँ ,गजरे कहेंगे,
इस अमर-सौभाग्य के श्रृंगार का आधार क्या है ?
मांग की सिंदूर रेखा..........................
कल कोई दिनकर विजय का ,सेहरा सर पर सजाये ,
जब तुम्हारी सप्तवर्णी छाँह में सोने चलेगा ,
या कोई हारा-थका व्याकुल सिपाही जब तुम्हारे ,
वक्ष पर धर शीश लेकर हिचकियाँ रोने चलेगा ,
तब किसी तन पर कसी दो बांह जुड़ कर पूछ लेगी,
इस प्रणय जीवन समर में जीत क्या है हार क्या है ?
मांग की सिंदूर रेखा..........................
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